Jeetega India
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This is Shubham Dubey from New Delhi, India.
I am a Full stack web developer who develops MERN based web apps. Currently, I am pursuing my B. Tech. in Computer Science Engineering from Maharaja Surajmal Institute of Technology (Indraprastha University). In July 2018 I completed my Diploma in Mechanical Engineering from G. B. pant Institute of Technology with first class & distinction.
Apart from being a web developer, I am also a a Python Developer who has commitments towards data science. Being an Open-Source Contributor, I actively participitate and play my part in completion of Innovative projects. This Website showcases my Web developing skills to some extent.
मैं राग पुराना छेड़ूँगा,
मैं आईना तुम्हारा, न छोड़ूंगा,
मेरा बस ये अवतार नया है,
मेरे लिए तुम्हारा संसार नया है,
ये दौर नया है,
ये देश नया है,
मुझ नए में पुरानी सोच वही,
बाकी हर चीज़ शेष नया है,
रग में बहता संदेश नया है...
जवां देश का रोग जवां है,
नए इस मर्ज की न कोई दवा है,
पुराने मसले नही होते अभी,
जुबानी असले नही होते अभी,
युवा खून में उबाल नया है,
सुनने की न इच्छाशक्ति है,
हर बात पे बात बिगड़ती है,
बातो ही बातो में कब कैसे हाथ आ जाता है,
बर्षो पुराने रिश्तो का अंतिम साथ आ जाता है,
पीछे छूटे रिश्तो को, दम तोड़ते रिश्तो को,
पीछे मुड़ न देखने का अंदाज़ नया है,
विवाद खत्म करने को अब कसमे नही खिलाई जाती,
लड़ाई खत्म करने की अब रश्में नही निभाई जाती,
मुक़द्दर के फैसले से इनकार नया है,
कीचड़ से कीचड़ धोने का ये पैगाम नया है,
यहाँ कोई बारूद तो कोई आग लिए घूमता है
यहाँ कानून भी इन बहसि हवाओ के पैर चूमता है,
चिंगारिया है तो धमाके भी होंगे,
कुछ मेरे, कुछ तुम्हारे इसमे जलते इलाके भी होंगे,
वो बातो से, जज़्बातों से फैसले करने की रिवायत नही अब,
इंसान नही, इंसानो में पलता ये हैवान नया है,
अपने ही आग में जलता ये समसान नया है,
खैर गलती नही बस ये इस दौर की,
सब दोष है बस उस दौड़ की,
जिसमे सब ये भागते रहते है,
खुद को सबसे आगे रखते है,
क्योंकि बैठाया गया ये बात है अंदर,
की जो जीता "बस" वही सिकन्दर,
जब बात ये घर कर जाती है,
जिंदगी ये जंग है हमेशा ही तैयार रहो,
तुम्ही बस विजयी कहलाओ, जब उस जंग का सार हो
बस बात सिखाना भूलते है, की
हँसकर बस स्वीकार करो, भले जीत हो या हार हो,
अब ये सिख सबके अंदर है
वो खीज़ सबके अंदर है,
सालो से ये भाग रहे है,
कुछ बिन सोए बस जाग रहे है,
कोई कामयाब कोई राख हुआ है,
अपने बच्चो को देख रोता ये हिंदुस्तान नया है....
ये बच्चे,
नादान से बच्चे,
सुना है इन बच्चो में खुदा बस्ता है
पर अक्सर इनका घर सुनसान रस्ता है।
जो खुद को इन गरीबों का रहनुमा कहते है,
उनके जलपान से ज्यादा इनका जान सस्ता है।
ये नादान से बच्चे,
जिन्होंने कभी स्कूल नही देखा है,
काँटो में चलते इन्होंने फूल नही देखा है।
पर इनको बेवकूफ, अज्ञान मत समझना,
इनका होना एक बोझ, बेवजह इनकी जान मत समझना,
ये जानते सब है, इनको सब पता है,
ये जानते है गरीब होना ही इनकी खता है
ये चावल के हर दाने की अहमियत जानते है
ये हमसे ज्यादा जिंदगी की जहमीयत जानते है
इन्हें नही पता Games, social media, youtube kids क्या है
इन्हें नही पता ये खिलौने क्या, खिलौनों की जिद्द क्या है।
पर इन्हें ये ज़रूर पता है, की जीवन में सबकुछ होना ज़रूरी नही होता,
अगर जिद्द करने से पेट भर जाता तो मैं भी जी भर के रोता
इन्हें पता है यू बेवजह कुछ करना फ़िज़ूल है
जीने के लिए खाना, और खाने के लिए लड़ना ही वसूल है।
जो ये मिले तुम्हे, तो इनका दिल रख लेना,
गर कुछ थोड़े पैसे हो, इनकी जेब मे रख देना।
ये सिखाते ज़िन्दगी है, जो सीखना ज़रूरी है
जो सिख पाओ कुछ तो गुरूदक्षिणा ज़रूरी है...
ये गुरु है, ये ही ब्रह्मा है...
ये जो बच्चे है...
ये नादान से बच्चे...
जो किसी ने न सोचा,
वो सबकुछ आज हो रहा है
अपनी ही कुछ गलतियों का बोझ,
अब हर इन्सान ढो रहा है
जो शहर वर्षों से कभी सोया न था,
वो उजालों में भी सो रहा है
मौत का रूप विकराल देख,
यमदूत भी नित रो रहा है,
जिस नवजीवन को था इतिहास रचना
वो खुद इतिहास हो रहा है
"हूँ शक्तिशाली सर्वशक्तिमान, सर्वविदित मैं विद्वान",
मनुष्य का अति-अभिमान खो रहा है
जो किसी ने न सोचा,
वो सब आज हो रहा है।
काल का विकराल रूप
श्रीकृष्ण प्रेम सा अनोखा भी मैं,
हूँ मायाजाल का अनंत सागर,
उसको पार कराता नौका भी मैं,
सबरी के बैरो सा पावन,
गज-अस्वाथमा सा धोखा भी मैं,
जहाँ होती आम सोच खरोच समान,
बुद्ध ज्ञान, गीता का श्लोक भी मैं,
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मैं अंतिम सफर का शोक वियोग,
शिशु किलकारी सा सुखद मौका भी मैं,
हूँ चक्रवात सा विध्वंश विनाशक,
वसंत हवा का झोंका भी मैं,
भूखा प्यासा रोटा बच्चे मे मैं ही,
कुबेर के भोज का न्योता भी मैं,
मैं ही आकाश पाताल धरातल,
हर जीव-जंतु में सोता भी मैं।
मैं भारत को महान देखना चाहता हूँ।
सच्चे युवा के हाथो में देश का कमान देखना चाहता हूँ
मैं मुस्लिमों के लिए हिंदू, हिंदुओ के लिए मुसलमान देखना चाहता हूँ,
जहाँ ना कोई द्वेष ना अत्याचार ना ही हो कोई भेदभाव,
सबके लिए, सबके नज़र में सम्मान देखना चाहता हूँ,
हाँ, मैं भारत को महान देखना चाहता हूँ।
हैं द्रौपदी यहाँ नित लूट रही, और हैं कई विदुर, धृतराष्ट्र नेत्रहीन यही,
भीष्म
भी हैं और भीम भी हैं, हैं अनेक धर्मराज भी मौन यही,
इन सबसे विहीन, इन सबसे मुक्त,
मैं नारी का बढ़ता आन देखना चाहता हूँ,
हाँ, मैं भारत महान देखना चाहता हूँ।
हर नीतियाँ सबके लिए समान देखना चाहता हूँ,
हो भ्रष्ट कुरूप विचार मुक्त, मैं कर्ण सा ईमान देखना चाहता हूँ
मैं भारत को फिर से महान देखना चाहता हूँ।